प्रधान के पद पर महिला निर्वाचित तो हो जाती हैं, लेकिन उनके पति या परिवार के पुरुष सदस्य ही वास्तविक रूप से पंचायत के कामकाज को संभालते हैं, यह एक सच्चाई है जिसे अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा था। भारतीय संविधान के 72वें संशोधन के तहत पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई, जिसके बाद से महिलाएं चुनाव जीतकर सरपंच या प्रधान का पद ग्रहण करने लगीं। लेकिन अधिकांश मामलों में वास्तविक प्रशासनिक कार्य उनके पति या परिवार के पुरुष सदस्य ही करते हैं। यह स्थिति समाज में एक प्रकार की असमानता और लिंग भेदभाव का प्रतीक बन चुकी है।
सिनेमा, जो समाज का दर्पण मानी जाती है, ने भी इस मुद्दे को अब उजागर करना शुरू कर दिया है। लोकप्रिय वेब सीरीज ‘पंचायत’ में इस सच को बखूबी दिखाया गया है, जहां निर्वाचित प्रधान मंजू देवी (नीना गुप्ता) के स्थान पर उनके पति ब्रजभूषण दुबे (रघुवीर यादव) पंचायत के सभी निर्णयों में दखल देते हैं। इस मुद्दे को इस सीरीज में बड़े ही संवेदनशील तरीके से उठाया गया है, जिससे दर्शक यह समझ सकें कि किस प्रकार महिला प्रधान के नाम पर पुरुष प्रधान का असली चेहरा समाज में सामने आता है।
प्रधान पति की कुप्रथा को खत्म करने के लिए अब बॉलीवुड भी कदम बढ़ा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नारी सशक्तिकरण के लिए उठाए गए कदमों के साथ बॉलीवुड ने भी अपना समर्थन दिया है। पंचायत वेब सीरीज बनाने वाली कंपनी ‘द वायरल फीवर’ ने पंचायतीराज मंत्रालय के साथ मिलकर एक विशेष एपिसोड तैयार किया है, जिसका नाम है ‘असली प्रधान कौन?’ इस एपिसोड में यह दिखाया गया है कि जब महिलाओं को नेतृत्व का सही अवसर मिलता है, तो वे न केवल योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करती हैं, बल्कि जनसुनवाई में भी सशक्त भूमिका निभाती हैं और जनता का विश्वास भी जीतने में सफल होती हैं।
इस एपिसोड के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि महिला प्रधान यदि पूरी स्वतंत्रता और समर्थन के साथ काम करें, तो वे न केवल अपने गांव का विकास कर सकती हैं, बल्कि वह अपने पति या परिवार के पुरुष सदस्य से कहीं अधिक प्रभावशाली साबित हो सकती हैं। वेब सीरीज में दिखाया गया है कि मंजू देवी ने अपने कार्यकाल में गांव के विकास को लेकर कई योजनाएं बनाई और उन्हें सफलतापूर्वक लागू किया, जिससे गांववाले यह कहने लगे कि उनके पति को अब हमेशा के लिए छुट्टी पर भेज देना चाहिए।
यह एपिसोड इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई गई एक विशेष समिति ने प्रधान पति के बनावटी नेतृत्व पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है। पंचायतीराज मंत्रालय अब इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए विभिन्न उपायों पर काम कर रहा है। इसमें जागरूकता अभियान से लेकर कड़े कानून बनाने तक की योजनाएं शामिल हैं। मंत्रालय का उद्देश्य है कि पंचायतों में महिलाओं को नेतृत्व का असली अवसर मिले और पुरुष प्रधान के रूप में काम कर रहे प्रधान पतियों की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
इस एपिसोड की प्रासंगिकता इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह दर्शाता है कि जब महिलाओं को पूरी तरह से नेतृत्व का अवसर दिया जाता है, तो वे किसी भी पुरुष से बेहतर साबित हो सकती हैं। यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और एक सकारात्मक बदलाव की ओर इशारा करता है, जहां महिलाओं को उनके अधिकार और अवसर पूरी तरह से मिलते हैं।
बॉलीवुड ने इस मुद्दे को उठाकर न केवल समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया है, बल्कि एक प्रभावशाली संदेश भी दिया है कि महिलाओं को सशक्त बनाना समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है। अब देखना यह है कि सरकार और समाज इस दिशा में कितनी गंभीरता से कदम उठाते हैं, ताकि महिला प्रधानों को उनके असली अधिकार और सम्मान मिल सके।
यह भी पढ़ें – टी20 वर्ल्ड कप 2026 से पहले इटली ने लिया बड़ा फैसला, जॉन डेविसन को बनाया हेड कोच