टिफिन में नॉन-वेज लाने पर स्कूल से निकाले गए छात्र, HC का छात्रों के हक में आया ये फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्कूल से निकाले गए छात्रों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिन्हें टिफिन में नॉन-वेज लाने पर स्कूल से निकाला गया था। कोर्ट ने जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि छात्रों का दाखिला सीबीएसई से संबद्ध किसी अन्य स्कूल में कराया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें उसने उन छात्रों के पक्ष में आदेश दिया है, जिन्हें उनके स्कूल से नॉन-वेज लाने के कारण बाहर कर दिया गया था। यह मामला अमरोह जिले के एक स्कूल से संबंधित है, जहां तीन नाबालिग छात्रों को अपने टिफिन में मांसाहारी भोजन लाने पर स्कूल से निकाल दिया गया था। इस घटना के बाद, बच्चों की मां ने न्याय की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
क्या था मामला?
अमरोह के एक स्कूल के प्रिंसिपल ने तीन बच्चों को टिफिन में मांसाहारी भोजन लाने पर उन्हें स्कूल से निकाल दिया। इस कदम को लेकर बच्चों की मां ने स्कूल प्रिंसिपल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रिंसिपल ने उनके बच्चों को नॉन-वेज भोजन लाने पर अनुचित तरीके से स्कूल से बाहर कर दिया।
कोर्ट का आदेश और छात्रों के हक में फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति एससी शर्मा शामिल थे, ने इस मामले में छात्रों के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने अमरोह के जिलाधिकारी को आदेश दिया कि वह दो सप्ताह के अंदर छात्रों का दाखिला किसी सीबीएसई से संबद्ध स्कूल में कराएं। इसके अलावा, जिलाधिकारी को अदालत के समक्ष अनुपालना का हलफनामा भी दाखिल करना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जिलाधिकारी द्वारा हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है, तो उन्हें अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा।
शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि स्कूल का यह कदम बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को केवल इसलिए स्कूल से बाहर कर दिया गया क्योंकि वे नॉन-वेज लाते थे, जबकि उनका यह अधिकार है कि वे जो चाहें, खा सकें, जब तक यह स्कूल के नियमों का उल्लंघन नहीं करता। याचिका में यह भी कहा गया कि बच्चों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित करना असंवैधानिक है।
नॉन-वेज के मुद्दे पर विवाद
नॉन-वेज भोजन का मुद्दा समाज में एक संवेदनशील विषय है, और यह कई बार विवादों का कारण बनता है। कुछ समुदायों में मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध है, जबकि अन्य समुदायों में यह सामान्य है। ऐसे में, नॉन-वेज को लेकर स्कूलों और संस्थाओं के नियम और नीतियां अक्सर विवादास्पद हो सकती हैं। इस मामले में, स्कूल के प्रिंसिपल ने बच्चों को नॉन-वेज लाने पर स्कूल से निकालने का निर्णय लिया था, जिसे अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैरकानूनी करार दिया।
आने वाली सुनवाई और प्रशासन की जिम्मेदारी
कोर्ट ने 17 दिसंबर को दिए गए आदेश में कहा कि अगली सुनवाई 6 जनवरी, 2025 को होगी। यह आदेश बच्चों के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि कोर्ट ने छात्रों के शिक्षा के अधिकार को प्राथमिकता दी है और प्रशासन को इसे सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
अधिकारों की सुरक्षा और बच्चों का भविष्य
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी बच्चे के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी बच्चे के परिवार या समाज के नियमों के खिलाफ जाकर उसे स्कूल से बाहर किया जाता है, तो यह बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय है। इस फैसले से यह संदेश जाता है कि बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है।
क्या इसका असर शिक्षा नीति पर होगा?
इस फैसले से यह सवाल उठता है कि क्या स्कूलों को अपने नियमों को इस तरह से लागू करना चाहिए, जिससे बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन न हो? क्या यह कदम अन्य स्कूलों में भी नकल किया जाएगा, जहां नॉन-वेज भोजन को लेकर विवाद हो सकता है? ऐसे मामलों में अदालतों की भूमिका अहम हो जाती है, क्योंकि यह बच्चों के शिक्षा के अधिकार से जुड़ा हुआ मामला है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला छात्रों के शिक्षा के अधिकार के पक्ष में एक मजबूत कदम है। यह आदेश केवल इस मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और शिक्षा व्यवस्था में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों को केवल उनके भोजन की आदतों की वजह से शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता। अब यह देखने वाली बात होगी कि जिलाधिकारी और संबंधित अधिकारी इस आदेश को कैसे लागू करते हैं और भविष्य में इस तरह के मामलों में क्या कदम उठाए जाते हैं।
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