दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा हो चुकी है। पांच फरवरी को दिल्ली के मतदाता नई सरकार के गठन के लिए वोट डालेंगे। लेकिन, सवाल यह है कि क्या इस बार दिल्ली के असल मुद्दों पर चर्चा होगी? पानी, प्रदूषण, यमुना की सफाई और जनसंख्या जैसे गंभीर समस्याओं पर कौन बात करेगा? दिल्ली की जनता को इस बार ऐसे नेताओं की तलाश है जो उनके दिल के हालात को समझें और समाधान की दिशा में काम करें।

दिल्ली के सामने गंभीर चुनौतियां
दिल्ली में प्रदूषण, पानी की समस्या, यमुना नदी की सफाई और बुनियादी ढांचे का विकास जैसे कई अहम मुद्दे हैं। हर साल सर्दियों में वायु गुणवत्ता खराब होती है, जो दिल्ली की छवि को वैश्विक स्तर पर भी प्रभावित करती है। गर्मियों में पानी की किल्लत और बरसात में जलभराव, यह समस्याएं राजधानी की हालत बयां करती हैं।
प्रदूषण से निपटने का कोई स्थायी समाधान नहीं
दिल्ली में प्रदूषण का मुद्दा हर चुनाव से पहले उठता है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू करने की प्रक्रिया केवल तीन महीने तक सीमित रहती है। सालभर इस समस्या से निपटने की कोई कारगर योजना न होना चिंता का विषय है।
पानी की समस्या और यमुना की सफाई
दिल्ली में मुफ्त पानी और 24 घंटे पानी की सप्लाई जैसे वादे तो सुनने को मिलते हैं, लेकिन सैकड़ों कच्ची कॉलोनियों में आज भी टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत और यमुना नदी की दुर्दशा राजधानी के माथे पर कलंक जैसा है। यमुना को उसके पुराने स्वरूप में लाने की दिशा में कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाए गए हैं।
बेतरतीब जनसंख्या वृद्धि और चरमराता बुनियादी ढांचा
दिल्ली में जहां 90 लाख की आबादी होनी चाहिए थी, वहां आज यह आंकड़ा तीन करोड़ पार कर चुका है। इस बेतरतीब वृद्धि के चलते शहरी ढांचा चरमरा रहा है। सड़कों की हालत खराब है, और कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। यह स्थिति चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनती, यह सवाल दिल्ली की जनता के मन में है।
जनकल्याण बनाम चुनावी रेवड़ी
चुनावी रेवड़ियों की परंपरा हर चुनाव में देखने को मिलती है। मुफ्त बिजली, पानी, और महिलाओं को नकद प्रोत्साहन जैसी घोषणाएं जनकल्याण के नाम पर की जाती हैं। लेकिन क्या यह योजनाएं वास्तव में दीर्घकालिक सुधार लाने में सक्षम हैं?
महिलाओं के सशक्तीकरण पर सवाल
महिलाओं को 2100 से 2500 रुपये प्रतिमाह देने की घोषणाएं उन महिलाओं के लिए राहत हो सकती हैं, जो घर चलाने में संघर्ष करती हैं। लेकिन, क्या यह राशि सशक्तीकरण की ओर कदम है या महिलाओं के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली योजना? सशक्तीकरण के लिए रोजगार और शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।
प्रमुख राजनीतिक दलों की भूमिका

आम आदमी पार्टी (AAP)
आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का वादा करते हुए राजनीति में प्रवेश किया था। हालांकि, दूसरे कार्यकाल में पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इस बार के चुनाव में पार्टी के लिए यह जीत राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का सवाल है।
भारतीय जनता पार्टी (BJP)
बीजेपी 27 साल के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी पर हमला कर रही है। लेकिन दिल्ली में बीजेपी का कोई मजबूत स्थानीय चेहरा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने से स्थानीय नेतृत्व की कमी साफ झलकती है।
कांग्रेस
कांग्रेस के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई बन गया है। शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस का सुनहरा दौर दिल्ली ने देखा है। लेकिन पिछले दो चुनावों में पार्टी का जनाधार काफी कमजोर हो गया। अब कांग्रेस अपने पुराने मतदाताओं को फिर से अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।
क्या कहती है दिल्ली की जनता?
दिल्ली की जनता इस बार बदलाव चाहती है। वे नेताओं से उम्मीद कर रहे हैं कि चुनावी रेवड़ियों से हटकर असली मुद्दों पर बात हो। जनता को उन नेताओं की जरूरत है, जो प्रदूषण, पानी और यमुना की सफाई जैसे गंभीर मुद्दों पर ठोस योजनाएं लेकर आएं।
शिक्षा और रोजगार भी बने मुद्दा
दिल्ली का शिक्षा मॉडल काफी सराहा गया है। लेकिन अब इसे और उन्नत बनाने की जरूरत है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना भी एक अहम मुद्दा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में जनता को अपने मुद्दों को लेकर जागरूक होना होगा। वोट देने से पहले यह सोचना जरूरी है कि कौन सा राजनीतिक दल उनकी समस्याओं का समाधान कर सकता है। मुफ्त की योजनाओं से आगे बढ़कर दीर्घकालिक विकास और सुधार की बात करने वाले नेताओं को चुनना वक्त की मांग है। दिल्ली के भविष्य का फैसला जनता के हाथों में है।
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