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महाकुंभ 2025 स्नान : लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई, महामंडलेश्वर का दीक्षा कार्यक्रम

महाकुंभ 2025 स्नान हाइलाइट्स: संगम में लाखों श्रद्धालुओं का उमड़ा हुजूम

महाकुंभ 2025 स्नान

महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में धूमधाम से जारी है, जहां लाखों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करने पहुंचे हैं। 16 जनवरी से 24 फरवरी तक चलने वाले इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं का तांता लगातार बढ़ रहा है। महाकुंभ 2025 स्नान के पांचवे दिन भी संगम में भारी भीड़ देखी गई। अब तक करीब सात करोड़ से अधिक श्रद्धालु इस धार्मिक आयोजन में भाग ले चुके हैं।

महाकुंभ 2025 में संगम पर श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

महाकुंभ 2025 स्नान के दौरान श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाकर अपनी श्रद्धा और विश्वास को अभिव्यक्त किया। दूसरे शाही स्नान मौनी अमावस्या पर, जो 2025 में 10 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के प्रयागराज पहुंचने की संभावना है, इसे सबसे बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में देखा जा रहा है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर लगभग 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी।

विदेशी श्रद्धालुओं की भी रही भागीदारी

महाकुंभ 2025 स्नान के दौरान, दस देशों का 21 सदस्यीय दल भी संगम स्नान के लिए पहुंचा। विदेशी श्रद्धालुओं ने भारतीय संस्कृति के इस अभूतपूर्व आयोजन में भाग लिया और विशेष रूप से अखाड़ों में संतों से आशीर्वाद लिया। इस आयोजन में न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर से श्रद्धालु आकर धर्म की आस्था में समाहित हो रहे हैं।

महामंडलेश्वर का दीक्षा कार्यक्रम

महाकुंभ 2025 के दौरान महामंडलेश्वर का दीक्षा कार्यक्रम भी आयोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस कार्यक्रम में प्रमुख संतों ने विभिन्न आचार्यों से दीक्षा प्राप्त की, जिससे महाकुंभ की धार्मिक महत्ता और बढ़ गई।

महाकुंभ 2025 स्नान के महत्व को समझें

महाकुंभ स्नान का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आस्था का एक अद्वितीय प्रतीक भी है। महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह वर्षों में होता है, और यह संप्रदायों, आस्थाओं, और धार्मिक परंपराओं के संगम का प्रतीक बन चुका है। संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा मानना है, और यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

महाकुंभ 2025 का उद्देश्य

महाकुंभ 2025 स्नान का उद्देश्य न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं को भी संजीवनी प्रदान करता है। यह पर्व हर व्यक्ति को आस्था और धार्मिकता के प्रति जागरूक करता है और समाज को एकजुट करने में सहायक है।

 

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