UP में नवजात बच्चों के जीवन बचाने में बबल सीपैप काफी असरदार।

एस०एन०सी०यू० में बबल (नियोनेटल) सीपैप के उपयोग के विषय में आयोजित हुआ प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण।

बबल सीपैप के कुशल उपयोग के संदर्भ में देश की पहली कार्यशाला का आयोजन।

नवजात बच्चे (प्री टर्म कम वजन के जन्मे बच्चे) जिनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं, उनके इलाज के लिए बबल सीपैप मशीन का प्रयोग।

लखनऊ। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एस०एन०सी०यू०) में कार्यरत बालरोग विशेषज्ञों, चिकित्सा अधिकारियों एवं स्टाफ नर्सों को Bubble CPAP (Continuous positive airway pressure) के उपयोग के संदर्भ में प्रथम बैच का 01 दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (TOT), स्टेट रिसोर्स सेन्टर (SRC) बालरोग विभाग, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ में आज दिनांक 07.06.2024 को आयोजित किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, पार्थ सारथी सेन शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। इस अवसर पर महानिदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य), डॉक्टर बृजेश राठौर, महानिदेशक (परिवार कल्याण), डॉक्टर शैलेश श्रीवास्तव, अधिशासी निदेशक, यू0पी0टी0एस0यू0, जॉन एंथोनी, महाप्रबंधक (बाल स्वास्थ्य) डा सूर्यांशू ओझा, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन गुंजन तनेजा, एवं प्रोग्राम मैनेजर, यूनीसेफ से डा अमित मेहरोत्रा एवं हेल्थ स्पेशिलिस्ट डा कनुप्रिया ने प्रशिक्षण में प्रशिक्षार्थियों को नवजात शिुशु में सांस रोग से संबंधित समस्याओं और उनके निवारण में बबल सीपैप की भूमिका व इसके प्रयोग की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

इस अवसर पर प्रमुख सचिव, पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि शिशु मृत्यु दर में सुधार लाने व स्वास्थ्य सूचकांकों में आशातीत सकारात्मक परिवर्तन हेतु स्वास्थ्य विभाग निरंतर प्रयास कर रहा है। इसी दिशा में एस०एन०सी०यू० में भर्ती शिशुओं को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने हेतु एस०एन०सी०यू० में बबल सीपैप की उपलब्धता के साथ कार्यरत चिकित्सकों व स्टाफ नर्स को बबल सीपैप के प्रयोग हेतु निरंतर प्रशिक्षित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। महानिदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ), डॉक्टर बृजेश राठौर ने कहा कि नवजात शिशुओं और प्री मेच्योर बेबी में सांस न ले पाने की परेशानी के मामले अक्सर देखने में आते हैं जिसके निवारण हेतु बबल सीपैप (लगातार सकारात्मक वायुमार्ग दबाव मशीन) के माध्यम से नवजात को सांस देने की तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है। जहां यह नॉन इन्वेसिव होने के कारण वेंटीलेटर की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है वहीं इसमें खर्च भी कम आता है। महानिदेशक (परिवार कल्याण), डॉक्टर शैलेश श्रीवास्तव ने कहा कि नवजात में सांस की समस्या के समाधान में बबल सीपैप काफी असरदार है।

इसके इस्तेमाल से 80-90 प्रतिशत नवजात को वेंटिलेटर पर निर्भरता समाप्त हो जाती है। के०जी०एम०यू० की वाइस चांसलर डॉक्टर सोनिया नित्यानंद ने बताया कि, “कई बार देखने में आता है कि किन्हीं कारणों से नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में नियोनैटल इन्टेंसिव केयर यूनिट (एन0आई0सी0यू0) में भर्ती कर उसे तुरंत वेंटीलेटर पर रखा जाता है जिसमें ट्रैकिया में ट्यूब डालकर सांस दी जाती है लेकिन बबल सीपैप मशीन से बिना किसी ट्यूब को अंदर डाले, नाक की सहायता से ही हल्के प्रेशर से ऑक्सीजन या हवा दी जाती है। हल्के प्रेशर से लगातार दबाव बनाने से यह होता है कि फेफड़े एक बार फूलने के बाद वापस पिचकते नहीं हैं। जिससे सांस लेना आसान हो जाता है। विभागाध्यक्ष बाल रोग, के0जी0एम0यू0 प्रोफेसर माला ने कहा कि बबल सीपैप के कुशल उपयोग के संदर्भ में एस0एन0सी0यू0 अंतर्गत मेडिकल प्रोफेशनल्स को प्रशिक्षित किए जाने हेतु देश में इस तरह का पहला प्रशिक्षण माड्यूल तैयार कर प्रथम प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण का आयोजन किया जाना दर्शाता है प्रदेश में बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वृहद स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। डा सुषमा नांगिया, न्यू नेटोलोजी फोरम की नेशनल चेयरमेन ने कहा कि उ0प्र0 में बबल सीपैप को चिकित्सा इकाइयों में चरणवद्ध ठोस रणनीति व चरणवद्ध तरीके से बढाया जा रहा है जो कि सराहनीय है।

अन्य सहयोगी संस्थाओं के विषय विशेषज्ञों ने बबल सीपैप मशीन की उपयोगिता को परिलक्षित करते हुए बताया कि बबल सीपैप मशीन नवजात शिशुओं के इलाज के लिए काफी उपयोगी है। जिन बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, उनके इलाज के लिए बबल सीपैप मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन से धीरे-धीरे बच्चे के नाक में हवा दी जाती है। जो उसके फेफड़े को बढ़ने में मदद करती है। बबल सीपैप मशीन से सांस देने की एक खासियत यह भी है कि इसे सांस की बीमारियों से जन्मे नवजात शिशु के जन्म के तुरंत बाद प्रसव कक्ष में स्थित एन0बी0सी0सी0 कार्नर में भी उपयोगित किया जा सकता है। यह भी बताया गया कि बबल सीपैप विधि से सांस देने में आमतौर पर वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ती है और अगर पड़ती भी है तो बहुत कम समय के लिए पड़ती है। जिससे बीमार नवजात शिशु के उपचार पर वित्तीय भार कम पड़ता है।दो दिवसीय प्रशिक्षण के पहले दिन शुक्रवार को प्रशिक्षण में बबल सीपैप पर विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए व कार्यशाला में बतौर प्रशिक्षक नवजात के सांस रोग से संबंधित समस्याओं और उनके निवारण में बबल सीपैप की भूमिका व इसके संचालन की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

विदित है कि वेंटिलेटर की अपेक्षा बबल सीपैप का इस्तेमाल काफी सुविधाजनक और बच्चों के लिए दर्द व परेशानी रहित है। वेंटिलेटर के उपयोग में जहां बच्चों की नाक से पाइप डालनी होती है इसमें सिर्फ आक्सीजन की तरह मास्क लगाया जाता है।कार्यशाला के मुख्य अतिथि पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, ने अपने विचार रखते हुए यह भी कहा कि प्रशिक्षण के माध्यम से जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे चिकित्सक एवं स्टाफ नर्सों को बच्चों से संबंधित जटिल बीमारियों के उपचार में लाभ होगा। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सकों के लिए देश-विदेश में हो रहे शोध और इलाज तरीकों को जानने-समझने का प्रयास करना चाहिए ताकि जानकारी का लाभ मरीजों को प्राप्त कराया जा सके।

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