बीजिंग में अजीत डोभाल का भव्य स्वागत
भारत और चीन के रिश्तों में जमी बर्फ अब पिघलती नजर आ रही है। एलएसी पर लंबे समय से जारी तनाव और गलवान कांड जैसे विवादों के बावजूद अब दोनों देश दोस्ती की राह पर लौटने का प्रयास कर रहे हैं। इस दिशा में एक अहम कदम तब देखा गया जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल मंगलवार को बीजिंग पहुंचे। चीन ने उनके स्वागत में रेड कार्पेट बिछाकर यह संकेत दिया कि वह भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए गंभीर है।
भारत-चीन विशेष प्रतिनिधि वार्ता
अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बुधवार को 23वें दौर की भारत-चीन विशेष प्रतिनिधि (SR) वार्ता का आयोजन हुआ। इस वार्ता में मुख्य रूप से पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी, गश्त के मुद्दों, और द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के उपायों पर चर्चा हुई।
इस वार्ता का उद्देश्य पिछले चार वर्षों से सीमा विवाद के कारण प्रभावित हुए द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देना है। चीन अब शांति और सहयोग का संदेश देते हुए भारत के हितों का सम्मान करने का प्रण ले रहा है।
बदल रहा है चीन का रुख
हाल के समय में चीन के रवैये में काफी बदलाव देखने को मिला है। पहले जहां चीन भारत को सीमा पर उकसाने और गीदड़भभकी देने में लगा रहता था, अब वही चीन दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है। रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद यह बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
चीन ने इस बैठक से पहले स्पष्ट किया कि वह आपसी मतभेदों को बातचीत के माध्यम से हल करने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार है।
डोनाल्ड ट्रंप का असर?
यह भी माना जा रहा है कि चीन के इस बदले हुए रुख के पीछे अमेरिका की राजनीति का बड़ा असर है। डोनाल्ड ट्रंप, जो चीन के कट्टर आलोचक रहे हैं, की राष्ट्रपति पद पर वापसी की संभावना से चीन चिंतित है। ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने पर चीन को अमेरिका से भारी टैरिफ और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत के साथ दोस्ती चीन की मजबूरी
चीन यह समझ चुका है कि भारत एक उभरती हुई महाशक्ति है और उसके विशाल बाजार से उलझने का मतलब है कई मोर्चों पर कमजोर पड़ना। पश्चिमी देशों के दबाव को संतुलित करने के लिए चीन को भारत और रूस जैसे देशों के साथ मजबूत रिश्ते बनाने की आवश्यकता है।
मोदी-जिनपिंग बैठक ने रखी दोस्ती की नींव
चीन और भारत के रिश्तों में यह नई गर्मजोशी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक का नतीजा है। उस बैठक में दोनों नेताओं के बीच एक आम सहमति बनी थी, जिसे अब अमल में लाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
वार्ता के मुख्य मुद्दे
- पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की वापसी: सीमा पर जारी सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के लिए गश्त से जुड़े मुद्दों पर सहमति बनने की उम्मीद है।
- द्विपक्षीय संबंधों की बहाली: चार साल से अधिक समय से बिगड़े संबंधों को सुधारने पर चर्चा।
- आपसी विश्वास बढ़ाना: चीन ने भारत के हितों का सम्मान करने और मतभेदों को ईमानदारी से दूर करने की बात कही है।
चीन का नया रुख: शांति और सहयोग
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस वार्ता से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह आपसी संवाद और विश्वास बढ़ाने के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है। प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने और मतभेदों को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत और चीन के रिश्तों का भविष्य
हालांकि चीन के इस बदले हुए रुख को लेकर भारत में आशंका बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के वादों पर तुरंत भरोसा करना कठिन है, क्योंकि उसका पिछला रिकॉर्ड भरोसेमंद नहीं रहा है।
अजीत डोभाल की भूमिका
अजीत डोभाल ने भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए हमेशा कठोर रुख अपनाया है। बीजिंग में उनकी मौजूदगी यह दर्शाती है कि भारत अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए किसी भी समझौते के लिए तैयार है।
अजीत डोभाल की चीन यात्रा भारत-चीन संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर इस वार्ता के सकारात्मक परिणाम निकलते हैं, तो यह दोनों देशों के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है। हालांकि, भारत को चीन के इरादों पर लगातार नजर बनाए रखनी होगी, ताकि सीमा पर किसी भी नई चुनौती से निपटा जा सके।
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