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Sunday, June 1, 2025

डेलिगेशन विवाद: कांग्रेस के पास कई चेहरे! फिर BJP ने शशि थरुर को ही क्यों चुना? जानें इसके पीछे का राज!

पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने पाकिस्तान को अच्छी खासी पटकनी दी। भारत के जवानों ने ऐसा मुंह तोड़ जवाब दिया है कि उनकी आने वाली नस्ल भी अब हमला करने से पहले 10 बार सोचेगी। खैर अब मामला काफी आगे बढ़ चुका है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अब ऑपरेशन डिप्लोमेटिक वार भी शुरू हो चुका है। दरअसल, मोदी सरकार ने 7 सदस्य प्रतिनिधिमंडल को पूरे विश्व में भेजने का फैसला किया जिसमें एक शशि थरूर का नाम भी सामने आया है, लेकिन शशि थरूर के नाम पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच विवाद देखने को मिल रहा है। तो चलिए जानते हैं आखिर बीजेपी ने कांग्रेस की तरफ से शशि थरुर को ही क्यों चुना?

शशि के नाम से कांग्रेस में बेचैनी
दरअसल, पहलगाम में 26 लोगों की हत्या और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच तनातनी का माहौल है। भारत का दृष्टिकोण विश्व के सामने रखने और आतंकवाद के खिलाफ नो टॉलरेंस की नीति को स्पष्ट करने के लिए ही भारत सरकार प्रमुख साझेदार देशों में प्रतिनिधिमंडल भेज रही है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत की स्थिति को पूर्ण रूप से स्पष्ट किया जाए। ऐसे में सरकार ने विपक्षी पार्टियों से प्रतिनिधि मंडल के लिए नेताओं के नाम मांगे थे।

कांग्रेस की तरफ से गौरव गोगोई, आनंद शर्मा, डॉक्टर सैयद नासिर हुसैन का नाम भेजा था लेकिन सरकार ने इनमें से किसी का भी नाम शामिल नहीं किया जबकि उन्होंने इसके उलट कांग्रेस सांसद शशि थरूर का नाम शामिल कर लिया। इसको लेकर कांग्रेस पार्टी नाराजगी जाहिर कर रही है। इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस नेता जय राम रमेश ने तो इसे बेईमानी भी बता दिया है।

shashi tharoor

क्यों चुने गए शशि थरुर?
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर प्रधानमंत्री की तरफ से इस तरह का फैसला क्यों लिया गया? दरअसल, संयुक्त राष्ट्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले शशि थरूर का नाम अक्सर सुर्खियों में रहा है। शशि थरूर कूटनीति के बड़े जानकार कहे जाते हैं। ऐसे में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब करने में उनका एक अहम रोल हो सकता है। इसके अलावा भी शशि थरुर को इसमें शामिल करने के कई कारण है।

शशि थरूर 1981 से 1984 तक सिंगापुर में यूएनएचसीआर कार्यालय के प्रमुख रहे। इसके अलावा वह 1989 में विशेष राजनीतिक मामलों के लिए अवर महासचिव के विशेष सहायक बने, जिसमें यूगोस्लाविया में शांति अभियानों की जिम्मेदारी भी शामिल थी। 2001 में उन्हें संचार और जन सूचना विभाग (डीपीआई) के अंतरिम प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, इसके बाद 2002 में उन्हें संचार और जन सूचना के लिए अवर महासचिव बनाया गया।

कूटनीति के अच्छे जानकार
शशि थरूर को लेकर अक्सर ये कहा जाता है कि वह कूटनीति के अच्छे जानकार है, वह भलीभांति इस बात को जानते हैं कि किस देश की क्या फितरत है और उसे कैसे जवाब दिया जा सकता है। शशि रूस यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर मोदी सरकार की कूटनीति की भी तारीफ कर चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि शशि थरूर शुरुआत से ही ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक रहे हैं। कहा जा रहा है कि यही वजह है कि पीएम मोदी ने उन्हें अब बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना है। वही शशि थरूर भारत पाक तनाव के बीच विभिन्न चैनल के माध्यम से भारत का पक्ष दुनिया के सामने रख चुके हैं।

shashi tharoor

मुसीबत के दौरान एकजुटता 
वैसे यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब राजनीतिक दल आपस में एकजुट हुए हैं। इससे पहले भी ऐसे कई मौके आए जब देश पर विपदा आई तो लोग एकजुट हुए। इससे पहले साल 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठते हुए भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था। जी हां.. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेई पहुंचे थे तो पाकिस्तान भी हैरान रह गया था। अब ऐसे में एक बार फिर ऐसा ही नजारा देखने को मिलने वाला है जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर राजनीतिक पार्टी एकजुट होकर भारत का नेतृत्व करने वाली है।

ये भी पढ़ें: क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की असल सच्चाई? आखिर क्यों दिया गया था यही नाम…

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