UP बोर्ड के अधिकारियों पर FIR: जानिए पूरा मामला
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उत्तर प्रदेश (UP) में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसमें यूपी बोर्ड के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगे हैं। 1999 की हाई स्कूल और 2001 की इंटरमीडिएट परीक्षा में कथित रूप से हेराफेरी की गई है। इस मामले में यूपी बोर्ड के पांच अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें सेवानिवृत्त हो चुके दो प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं। इस खबर से शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है।
क्या है FIR का मामला?
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों पर यह आरोप है कि उन्होंने 1999 और 2001 की परीक्षाओं से संबंधित गणक पंजिकाओं में हेराफेरी की। ये हेराफेरी तब हुई, जब परीक्षा से संबंधित अभिलेखों में कुछ पृष्ठों को बदल दिया गया। इसका प्रभाव कई प्रमुख इंटर कॉलेजों पर पड़ा, जिनमें प्रमुख नाम विद्यावती यादव स्मारक, महर्षि कृष्ण इंटर कॉलेज, सेठ गंगाराम जायसवाल इंटरमीडिएट कॉलेज और अन्य शामिल हैं।
पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा
सिविल लाइन पुलिस ने इस मामले में यूपी बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। इन अधिकारियों में सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह और राजेश कुमार के अलावा, अन्य अधिकारी जैसे आत्म प्रकाश, प्रमोद कुमार और राकेश कुमार केसरवानी भी शामिल हैं। ये सभी अधिकारी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के विभिन्न दफ्तरों में कार्यरत थे।
अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर का इतिहास
यह मुकदमा यूपी बोर्ड के उप सचिव प्रशासन अतुल कुमार सिंह की तहरीर पर सिविल लाइन थाने में दर्ज कराया गया था। इन अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने 1999 और 2001 की गणक पंजिकाओं के पृष्ठों को बदलकर जालसाजी की, जिससे कई स्कूलों के अभिलेखों में गड़बड़ी हो गई। इसके बाद जांच समिति द्वारा इस मामले की जांच की गई, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई।
जांच समिति की रिपोर्ट और एफआईआर
जांच समिति के अध्यक्ष अपर शिक्षा निदेशक ने कुछ महीने पहले जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अधिकारियों को दोषी ठहराया गया था। रिपोर्ट के आधार पर सिविल लाइन थाने में एफआईआर दर्ज की गई। यह जांच उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों और संबंधित विभागों के लिए एक चेतावनी है कि ऐसी गड़बड़ियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह मामला यूपी बोर्ड के अधिकारियों पर एफआईआर के साथ-साथ, शिक्षा विभाग में हो रही अनियमितताओं का पर्दाफाश करता है। इस घटना ने शिक्षा प्रणाली की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब यह देखना होगा कि इस मामले में आगे कौन सी कार्रवाई की जाती है और दोषियों को सजा कब मिलती है।
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