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Monday, June 30, 2025

दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के मुकाबले में दिल्ली बीजेपी की सुस्‍त तैयारी

दिल्ली चुनाव: केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी इतनी सुस्त और गुमराह क्यों?

दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के मुकाबले में दिल्ली बीजेपी की सुस्‍त तैयारी
दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के मुकाबले में दिल्ली बीजेपी की सुस्‍त तैयारी

दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा की रणनीति और तैयारियों में अपेक्षित आक्रामकता नदारद दिख रही है। यह स्थिति तब है, जब आम आदमी पार्टी (आप) और उनके नेता अरविंद केजरीवाल राजनीतिक करियर के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दिल्ली में सुस्त और गुमराह नजर आ रही है। आइए, इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं।

1. बीजेपी का नेतृत्व संकट: केजरीवाल का चैलेंजर कौन?

बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अपना नेतृत्व किसे सौंपेगी। 2013 में जब डॉ. हर्षवर्धन के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा था, तब उसने 31 सीटें जीती थीं। इसके विपरीत, 2015 में किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर लड़ने के बावजूद पार्टी सिर्फ 3 सीटों पर सिमट गई। 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने के बावजूद बीजेपी 8 सीटों से आगे नहीं बढ़ सकी।

संघ के मुखपत्र ने 2020 के चुनावों के बाद सलाह दी थी कि बीजेपी को दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व खड़ा करने पर जोर देना चाहिए। इसके बावजूद, दिल्ली में बीजेपी नेतृत्व अब तक कन्फ्यूज और निष्क्रिय नजर आ रहा है। वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन पार्टी का कोई स्पष्ट चेहरा नहीं दिख रहा है।

2. महिलाओं की योजनाओं पर बीजेपी का रुख

महिलाओं के लिए योजनाएं चुनावों में निर्णायक साबित हो सकती हैं। अरविंद केजरीवाल ने ‘महिला सम्मान योजना’ के तहत 2,100 रुपये प्रति महीने की घोषणा की है। बीजेपी ने अभी तक अपनी कोई मजबूत योजना पेश नहीं की है।

बीजेपी नेताओं ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए योजनाओं की शुरुआत की थी, लेकिन दिल्ली में अभी तक वैसी कोई पहल नहीं हुई है। जब तक बीजेपी अपनी योजनाओं को लागू नहीं करती, तब तक केवल विरोध करना उसे फायदा नहीं पहुंचा सकता।

दिल्ली चुनाव

3. घुसपैठियों पर अभियान: क्या यह पर्याप्त है?

दिल्ली पुलिस ने बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। हालांकि, यह कदम ऐन चुनाव से पहले उठाया गया है, जिससे इसके इरादों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीजेपी इस मुद्दे पर ‘आप’ पर निशाना साध रही है, जबकि केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर जिम्मेदारी डाल दी है।

यह सवाल भी उठता है कि दिल्ली सरकार को इसके लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जबकि कानून-व्यवस्था का जिम्मा केंद्र के अधीन है।

4. केवल सत्ता विरोधी लहर पर निर्भरता

अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर मौजूद है। आम आदमी पार्टी के मौजूदा विधायकों का टिकट काटना और ‘70 सीटों पर केजरीवाल’ के नाम से चुनाव लड़ने का ऐलान इसका उदाहरण है।

इसके अलावा, शराब नीति केस में केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उनकी गिरफ्तारी भी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रहे हैं। बावजूद इसके, बीजेपी इस मौके का फायदा उठाने में असफल दिख रही है। केवल सत्ता विरोधी लहर पर निर्भर रहना एक कमजोर रणनीति साबित हो सकती है।

5. विधानसभाओं में बीजेपी की निष्क्रियता

नई दिल्ली विधानसभा को छोड़कर, अन्य क्षेत्रों में बीजेपी की कोई सक्रियता नहीं दिख रही है। कांग्रेस ने नई दिल्ली और जंगपुरा से अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, जबकि बीजेपी अब तक उम्मीदवारों की सूची भी जारी नहीं कर पाई है।

बीजेपी नेताओं, जैसे मनोज तिवारी और वीरेंद्र सचदेवा, ने आम आदमी पार्टी पर हमले जरूर किए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी सक्रियता नजर नहीं आती।

बीजेपी की कमजोरियां: दिल्ली में विशेष स्थिति

1. नेतृत्व की कमी:

दिल्ली में बीजेपी को अभी भी एक मजबूत स्थानीय चेहरा नहीं मिला है।

2. नीतियों की स्पष्टता का अभाव:

महिलाओं के लिए कोई ठोस योजना और अन्य सामाजिक पहल की कमी बीजेपी की कमजोरी है।

3. केवल विरोध की राजनीति:

अरविंद केजरीवाल की योजनाओं पर सवाल उठाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि बीजेपी अपनी योजनाएं जनता के सामने पेश करे।

बीजेपी को क्या करना चाहिए?

1. नेतृत्व को स्पष्ट करना:

बीजेपी को डॉ. हर्षवर्धन जैसे अनुभवी नेताओं को वापस दिल्ली की राजनीति में लाना चाहिए।

2. जमीनी स्तर पर सक्रियता:

विधानसभा क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है।

3. अपनी योजनाओं की घोषणा:

महिलाओं और अन्य वर्गों के लिए अपनी योजनाओं की घोषणा कर बीजेपी ‘आप’ के वर्चस्व को चुनौती दे सकती है।

4. रणनीतिक गठजोड़:

दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा उठाते हुए बीजेपी को अपने गठजोड़ की रणनीति पर भी काम करना चाहिए।

दिल्ली चुनावों में बीजेपी की सुस्ती और गुमराह रणनीति उसकी संभावनाओं को कमजोर कर रही है। अरविंद केजरीवाल की सत्ता विरोधी लहर और उनकी पार्टी की आंतरिक समस्याओं के बावजूद, बीजेपी अभी तक अपने पत्ते नहीं खोल पाई है।

अगर बीजेपी समय रहते अपने नेतृत्व को स्पष्ट नहीं करती और जमीनी स्तर पर सक्रियता नहीं दिखाती, तो यह उसके लिए एक और हार की स्थिति पैदा कर सकता है।

 

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