त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम में वीरांगना रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर की प्रेरणादायक उपलब्धियां

त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम: वीरांगना रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर की प्रेरणादायक गाथा

हाइलाइट्स:

  • सीएमएस स्कूल गोमतीनगर में त्रिशूल दीक्षा और पथ संचलन का आयोजन
  • रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित
  • महिला सशक्तिकरण के प्रतीक बनकर उभरीं ये वीरांगनाएं

त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन

लखनऊ के सीएमएस स्कूल, विशालखंड, गोमतीनगर में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की मातृशक्ति और दुर्गा वाहिनी द्वारा त्रिशूल दीक्षा, मान वंदना और पथ संचलन का आयोजन किया गया। दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह कार्यक्रम वीरांगना रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर की स्मृति को समर्पित था।

कार्यक्रम में मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में विहिप के प्रांत अध्यक्ष कन्हैयालाल, दुर्गा वाहिनी की क्षेत्र संयोजिका कल्पना दीदी, और मातृशक्ति संयोजिका दीप्ति ने भाग लिया। त्रिशूल दीक्षा का शपथ समारोह डॉ. मुद्रा द्वारा संपन्न किया गया।


पथ संचलन: महिला सशक्तिकरण का उदाहरण

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव ने पथ संचलन का शुभारंभ किया। अनुशासित वेशभूषा और त्रिशूल धारण किए हुए सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं ने ‘जय श्री राम’ और ‘माता अहिल्याबाई की जय’ जैसे उद्घोष करते हुए सीएमएस स्कूल से यात्रा प्रारंभ की। यह संचलन दयाल पैराडाइज चौराहा, शंकर चौराहा, और एचडीएफसी बैंक होते हुए वापस सीएमएस स्कूल पर संपन्न हुआ।

इसमें विहिप के प्रांत संगठन मंत्री विजय प्रताप, प्रांत मंत्री देवेंद्र, और प्रचार प्रमुख नृपेंद्र समेत सैकड़ों स्वयंसेवक शामिल हुए।


वीरांगना रानी दुर्गावती का जीवन परिचय

रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की एक अद्भुत योद्धा थीं। वे गोंडवाना साम्राज्य की महारानी थीं और अपने राज्य की रक्षा के लिए उन्होंने मुगलों से कई युद्ध लड़े। उनकी वीरता और त्याग महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।


अहिल्याबाई होल्कर: समाज सुधारक और कुशल शासक

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 1725 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी गांव में हुआ था। वे मालवा के होल्कर वंशीय राज्य की महारानी थीं। 29 वर्ष की आयु में पति और फिर ससुर की मृत्यु के बाद उन्होंने शासन की बागडोर संभाली।

अहिल्याबाई के प्रमुख योगदान

  1. मंदिरों का पुनर्निर्माण: काशी विश्वनाथ और सोमनाथ जैसे मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया।
  2. समाज सेवा: तीर्थ स्थान, घाट, कुएं और बावड़ी बनवाईं।
  3. महिलाओं के अधिकार: विधवाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाया।
  4. गरीबों की मदद: अन्नसत्र और प्याऊ का निर्माण कराया।


महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, विहिप के सह संगठन मंत्री विनायक राव देशपांडे ने अपने संबोधन में कहा कि रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर महिलाओं की अदम्य शक्ति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। उनके संघर्ष और उपलब्धियां आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं।


कार्यक्रम में अनुशासन और समर्पण का परिचय

त्रिशूल दीक्षा और पथ संचलन कार्यक्रम में मातृशक्ति और दुर्गा वाहिनी की अनुशासित उपस्थिति ने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की। उनके उद्घोष ने पूरे कार्यक्रम को एक नई ऊर्जा प्रदान की।


निष्कर्ष: इतिहास से प्रेरणा लेने की सीख

त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम ने महिलाओं की शक्ति और उनके योगदान को सराहा। वीरांगना रानी दुर्गावती और अहिल्याबाई होल्कर की गाथाएं हमें सिखाती हैं कि समाज में बदलाव लाने और कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है।